Monday, February 13, 2017

अस्थमा और होम्योपैथी

अस्थमा और  होम्योपैथी



सर्दी का मौसम शुरू होते ही सबसे ज्यादा तकलीफ अस्थमा यानि दमा के मरीजो को होती हैं   यह सांस संबधी रोगों में सबसे ज्यादा कष्टकारी होता हैंवैसे यह एक यूनानी शब्द है जिसका अर्थ ‘जल्दी-जल्दी सांस लेना’ या ‘सांस के लिए जोर लगाना’ हैं    


क्या होता है अस्थमा .....

यह एक ऐसी अवस्था होती हैं जिसमे श्वसन मार्ग में किसी प्रकार की रूकावट जैसे सूजन, सिकुडन या कफ़ आदि आ जाता हैं, रूकावट के कारण सांस लेने में और कफ़ बाहर निकालने में तकलीफ होने लगती हैंइसमें सांस फूलने या सांस नहीं आने के दौरे पड़ते हैं, रोगी हवा को तरसता हैं 
        

किसको होता हैं अस्थमा .....

अस्थमा स्त्री, पुरुष, बच्चे किसी को भी हो सकता हैं   


प्रकार ....

अस्थमा दो प्रकार का होता हैं ...

बाहरी (Extrinsic)....

यह बच्चो को या किशोरवस्था में होता हैंइसके पेशेंट को बचपन में एक्जिमा (skin-disease)की शिकायत रहती हैं, परिवार( Family History) में किसी को अस्थमा रहता हैं यानि यह अनुवांशिक होता हैंइस प्रकार के अस्थमा में अटैक रुक-रुक कर होता हैं और पेशेंट जल्दी संभल जाता हैं  


भीतरी (Intrinsic)....

इस प्रकार का अस्थमा अधिकतर 35 से अधिक उम्र के लोगो को होता हैंबचपन में किसी भी प्रकार की चर्मरोग (skin-disease) की शिकायत नहीं रहती हैं, न ही परिवार में किसी को अस्थमा होता हैंअटैक एकाएक और बहुत ही तेज (Severe) होता हैंयह किसी प्रकार के इन्फेक्शन या कसरत के बाद अटैक पड़ता हैं
       

कारण....

·         ठंडी हवा या कोहरे से 

·         सांस की नली में वायरल इन्फेक्शन (viral respiratory tract infection) के कारण

·         किसी दवा के कारण

·         धूल,धुएं पेंट या किसी प्रकार की गंध (अगबत्ती, परफ्यूम) के कारण

·         तनाव के कारण

·         किसी चीज की एलर्जी के कारण

·         वातावरण के कारण

·         गलत खान-पान के कारण

  



लक्षण.....


·         सांस लेने में रोगी को कठिनाई होती हैं  
·         अधिकतर सूखी खांसी आती हैं  
·         तेज-तेज सांस चलती हैं    
·         कभी-कभी बलगम (sputum) डोरी जैसा लम्बा खिंचता हैं   
·         मुहं से सांस के साथ सीटी जैसी आवाज़ आती हैं   
·         मुहं से सांस लेती पड़ती हैं   
·         जब दौरा पड़ता है तो रोगी लेट नहीं पाता हैं  
·         छाती (chest) में जकडन और दर्द होता हैं   
·         पेशेंट बहुत जल्दी थक जाता हैं, हांफने लगता हैं   
·         गले में बलगम (sputum) चिपक जाता हैं, जिसे निकालने के लिए पेशेंट बार-बार खांसता हैं    
·         रात को ज्यादा तकलीफ होती हैं   
·         कमजोरी लगती हैं  

  


कब बढ़ता हैं अस्थमा ....


·         अधिकतर रात को या सुबह-सुबह  

·         व्यायाम (Exercise) के बाद

·         बारिश या ठंड के मौसम में

·         ठंडी हवा या कोहरे से  



होम्योपैथिक मेडिसिन ......

अस्थमा के लिए होम्योपैथिक दवाये बहुत सारी हैं जिनमे से कुछ के बारे में जानकारी  दे रही हूँ....


आर्सेनिक-एल्बम (Ars-Alb)...

इसके पेशेंट को रात को 12 बजे के बाद रोग बढ़ता हैंबहुत ज्यादा बैचेनी और प्यास लगती हैं, दम घुटता हैं रोगी लेट नहीं पाता हैं, सीने में जलन होती हैं सांस रूकती सी लगती हैं   कफ़ झागदार और कम मात्रा में निकलता हैंहर समय मरने का डर लगता हैं

   


इपिकाक (Ipecac).....


लगातार खांसी आती हैं, एकाएक तेज अटैक होता हैंरोग के शुरू में बैचेनी और उल्टी जैसा लगता हैं, फेफड़ो (Lungs) से खून आने लगता हैंनाक से खून आने लगता हैंसीने में जकड़न लगती हैं
  



ब्लेटा-ओरिएंटा (Blatta-Ori)...

दम घुटता हैंसांस नहीं लेते बनती हैंपस जैसा बलगम निकलता हैंरोगी लेट नहीं पाता हैं  यह अस्थमा के अटैक को कम करता हैंसांस की नालियों में सूजन रहती हैं

  


सेनेगा (Senega).....

आवाज़ भारी हो जाती हैंवृद्ध लोगो को होने वाला अस्थमा, खांसते समय पीठ में दर्द होता हैं  सीने में भारीपन लगता हैंबलगम बहुत ज्यादा होता हैंआवाज़ कभी-कभी बंद हो जाती हैं  सूखी खांसी आती हैं
  


 एसिड-सल्फ ( Acid-Sulph).....

वाहनों के धुएं, धूल आदि के कारण अस्थमा होता हैंकफ़ के कारण गला चौक हो जाता हैं  गैस ज्यादा बनती हैंसीने में जकड़न होती हैं

  


कार्बो-वेज (Carbo-Veg)....


वृद्ध लोगो का अस्थमा, फेफड़ो से खून आ जाता हैंबहुत ज्यादा डकारे आती हैंसांस में सीटी सी बजती हैंगले में खुजली होती हैंआवाज़ फटी-फटी सी रहती हैं



परहेज ....अस्थमा के रोगी को ठंडी और खट्टी चीजो का परहेज रखना चाहिए।  



नोट-  होम्योपथी में रोग के कारण को दूर करके रोगी को ठीक किया जाता है। प्रत्येक रोगी की दवा उसकी पोटेंसी, डोज आदि उसकी शारीरिक और मानसिक अवस्था के अनुसार अलग-अलग होती है। अतः बिना चिकित्सीय परामर्श के यहां दी हुई किसी भी दवा का उपयोग न करें। रोग और होम्योपथी दवा के बारे में और अधिक जानकारी के लिए यहां लॉगइन कर सकते हैं।    

नाड़ी खोल देती हैं शरीर के सारे राज

         नाड़ी खोल देती हैं शरीर के सारे राज





नाड़ी देख कर रोग की जानकारी देना हमारे यहाँ की एक प्राचीन विद्या हैं  पहले के समय में चिकित्सक किसी भी व्यक्ति की नाड़ी देख कर उसके रोग के बारे में बता देते थे यहाँ तक कि शरीर के किस अंग में रोग या तकलीफ हैं, रोगी ने क्या खाया या पिया हैं या भविष्य में उसे कौन सा रोग हो सकता हैं आदि परन्तु रोगों की जांच के लिए जैसे-जैसे आधुनिक मशीनों का उपयोग होने लगा, इस विद्या का उपयोग कम होने लगा हैं वैसे आज भी हमारे देश में ऐसे बहुत से डॉक्टर हैं जो नाड़ी देख कर रोग के बारे में बता देते हैं



क्या होता हैं नाड़ी देखना ....

हमारा हार्ट हर समय फैलता और सिकुड़ता यानी धड़कता रहता हैं जब हार्ट फैलता हैं तो उसके अंदर फेफड़ो (Lungs) से शुद्ध रक्त आ जाता हैं, और उसके बाद जब सिकुड़ता हैं तो यह शुद्ध रक्त महाधमनी (Aorta) में चला जाता हैं महाधमनी शरीर की सभी धमनियों (Artery) को ये रक्त भेजती हैं इस प्रकार से  धमनी (Artery) में रक्त के जाने से हर बार धक्का लगता हैं  इस धक्के को ही  नाड़ी का स्पंदन या उछाल कहते हैं नाड़ी के इस स्पंदन से रोग की जांच करने को ही नाड़ी देखना कहते हैं


कहाँ की नाड़ी देखते हैं ....

हमारे हाथ की कलाई की धमनी (Radial-Artery) की जगह नाड़ी देखी जाती हैं वैसे नाड़ी का यह स्पंदन शरीर के कई स्थानों पर महसूस किया जा सकता हैं


कब देखनी चाहिए नाड़ी .....

जब रोगी आराम कर रहा हो या सुबह के समय जब उसका पेट खाली हो


कब नहीं देखनी चाहिए नाड़ी ...

जब रोगी बहुत घबराया हुआ हो या सो कर उठा हो
खाना खाने के बाद
शारीरिक मेहनत करने के बाद



रोग की पहचान कैसे होती हैं नाड़ी से ....

नाड़ी से शरीर के रोगों के बारे में कैसे पता किया जाता हैं इसके बारे में यहाँ कुछ के बारे में जानकारी दे रही हूँ

1)      यदि दाहिने हाथ की नाड़ी सख्त, बारीक और कमजोर हो तो वह लीवर की कमजोरी बताती है
2)      जिस तरफ के फेफड़े (Lung) में कोई रोग होता हैं उस ओर की नाड़ी ऊँची होती हैं
3)      पुराने सिरदर्द वाले रोगी की नाड़ी प्राय: कमजोर होती हैं
4)      यदि बायी नाड़ी तेज हो और साथ में खांसी और बुखार भी हो तो फेफड़े  (lungs) में रोग होता हैं
5)    यदि बायी नाड़ी तीव्र हो परन्तु खांसी या बुखार नहीं हो तो यह मूत्राशय (Urinary-Bladder) की तकलीफ बताती हैं
6)      किडनी के रोग में नाड़ी कठोर और दृढ होती हैं
7)      यदि नाड़ी बिलकुल पतली या चीटीं की चल जैसी हो जाए तो यह मृत्यु की सूचक हैं
8)     यदि नाड़ी तेज और लगतार चलते-चलते अटकने लगे तो यह मौत के समीप होने की सूचना देती हैं
9)      यदि रोगी बुखार में दही खा लेता हैं तो उसकी नाड़ी गर्म और बहुत तेज हो जाती हैं
10)  बलगम की अधिकता होने पर नाड़ी मोटी हो जाती हैं
11)  पाइल्स के रोग में नाड़ी कभी धीमी, कभी टेढ़ी-मेढ़ी और कभी कोमल चलती हैं
12)  जोड़ो के दर्द में नाड़ी कभी-कभी तेजी से फडकती हैं, तो कभी दुर्बलता से
13)  पीरियड्स में तकलीफ होने पर नाड़ी मोटी और स्थिर हो जाती हैं
14)  तेल और गुड खाने वाले की नाड़ी कठोर और शक्तिशाली हो जाती हैं
15)  अधिक नमकीन भोजन से नाड़ी सीधी और तेज हो जाती हैं
16)  अधिक मीठा खाने वालो की नाड़ी उछल कर चलती हैं

17)  मूली खाने से नाड़ी की गति सुस्त हो जाती हैं